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घ्यू संक्रांति का त्यार आज,घ्यू संक्रांति का त्यार आपसी प्रेम मेल मिलाप,भाई चारे और आपसी द्वेष को भी‌ दूर करता है-बृजमोहन जोशी

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नैनीताल। घ्यू संक्रांति -ओलगी,सिंह संक्रांति –
हमारे ‌इस ग्रामीण अंचल में भादो मास की संक्रांति को घ्यू संक्रांति का त्यार मनाया जाता है।
इस दिन लोग एक दूसरे को इस मौसम में होने वाले फल , सब्जी,छिलके,पतल ,ट्वाप(माला के पत्तो कि बनी बरसाति) तथा गडेरी- पइनआलउ के कोमल पत्तों जिन्हें गाबा कहा जाता है, भुट्टा , ककड़ी,भेंट करते हैं तथा बदले में उनको भी भेंट दी जाती है।

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लोक देवी देवता के थान में इस मौसम में होने वाली उपरोक्त सभी वस्तुएं सबसे पहले चढ़ाई जाती है तब दैनिक जीवन में लोग इनका उपयोग करते हैं। विशेष रूप से इस दिन घी खाने का रिवाज है।
उड़द की दाल से बनी रोटी घी के साथ खायी जाती है,खीर के साथ भी घी खाया जाता है। देवी देवताओं को भी घी लगाया जाता है।घी का ही तिलक लगाया जाता है।घी से ही नैवेद्य बनाए जाते हैं।
घी खाने को लेकर लोक मान्यता यह भी है कि जो लोग इस दिन घी नहीं खायेंगे वह लोग अगले जन्म में गनेल (घेंघा)कि योनी मै जन्म लेंगे। हमारे ‌इस ग्रामीण अंचल में इस माह दुध,दही,घी, अर्थात धिनाई खुब होती है तथा शरीर कि मांग भई होती है इसलिए चुका उपयोग किया जाता है।यह त्यौहार वस्तु विनिमय, आदान-प्रदान का ही एक रूप है।इस प्रकार यह त्यौहार आपसी प्रेम मेल मिलाप,भाई चारे को तथा आपसी द्वेष को भी‌ दूर करता है।

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नैनीताल। घ्यू संक्रांति -ओलगी,सिंह संक्रांति –हमारे ‌इस ग्रामीण अंचल में भादो मास की संक्रांति को घ्यू संक्रांति का त्यार मनाया जाता है।इस दिन लोग एक दूसरे को इस मौसम में होने वाले फल , सब्जी,छिलके,पतल ,ट्वाप(माला के…

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