भारतीय सैनिक विद्यालय में 1857 के विद्रोह के शहीदों को किया याद

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नैनीताल।1857 के विद्रोह के शहीदों की याद में बुधवार को भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिसमें रचनात्मक शिक्षक मंडल की पहल पर आजादी के दौर के तराने गाए गए, उस दौर के बारे में बताने वाली फिल्में देखी गई,शहीदों के चित्र बनाए गए।कार्यक्रम की शुरुआत 1857 के संग्रामियों को श्रद्धांजलि के साथ हुई,फिर अज़ीमुल्ला खां द्वारा लिखा गया 1857 में लिखा गया उस विद्रोह का प्रयाण गीत हम हैं इसके मालिक हिंदोस्ता हमारा का सामूहिक वाचन किया गया। कुमाऊं विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के सदस्य एडवोकेट कैलाश जोशी ने आधार वक्तव्य देते हुए कहा आज ही बैरकपुर छावनी से मंगल पांडे ने विद्रोह की आधारशिला रखी ।1857 की क्रांति अचानक हुई क्रांति नहीं थी बल्कि आजादी के लिए एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थी जिसकी तैयारियां पिछले 4 साल से चल रही थी।
इस क्रांति का उद्देश्य अंग्रेजों को मार भगाना, भारतवर्ष को फिरंगियों की गुलामी से आजाद कराना, फिरंगियों की लूट से, अत्याचार से और शोषण से जनता और देश को बचाना थे। इसका नारा भी था “मारो फिरंगी को”। इस क्रांति के कारण आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक थे। इस क्रांति के वह कारण थे जिनकी वजह से जनता में अंग्रेजो के खिलाफ त्राहि-त्राहि मच गई थी और उसने अपना सब कुछ कुर्बान करने की ठान ली थी और आजादी पाने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने की नियत से क्रांति की जंग में कूद गई थी।
इस गदर के नेता बहादुर शाह जफर, नानासाहेब, अजीमुल्ला खान, महारानी लक्ष्मीबाई, बेगमहजरत महल, वीर कुंवर सिंह, तात्या टोपे, मौलाना अहमद शाह और बेगम हजरत महल के प्रधानमंत्री बाल कृष्ण सिंह आदि थे। इस क्रांति के लिए फ्रांस, इटली, रूस, क्रीमिया, ईरान आदि देशों से संपर्क किया गया था जो अजीमुल्ला खां ने किया था। इसमें सिपाहियों, किसानों, मजदूरों, जनजातियों, राजा-रानियों,नवाबों-बेगम ने भाग लिया था।यह लड़ाई मेरठ से शुरू हुई थी जिसमें पहले चरण में 85 सैनिकों को अलग-अलग सजा दी गई थी। कमाल की बात यह है कि इन 85 सैनिकों में 51 मुस्लिम और 34 हिंदू सिपाही शामिल थे जिनको अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। यह हिंदू मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल थी।
रचनात्मक शिक्षक मंडल संयोजक नवेंदु मठपाल ने कहा आजादी की लड़ाई ने एक बहुत मूल्य विरासत छोडी है,भारतीयों की, हिंदू-मुस्लिम एकता की विरासत। इसने भारतीयों के अंदर स्वाभिमान जगाया, उन्हें मूल्यों के लिए लड़ना सिखाया और मरना सिखाया। अंग्रेजों के हौसले और महत्वाकांक्षा को बाकायदा तोड़ डाला। इसने भारतीयों को सिर उठाकर चलने, संगठन बनाने और संघर्ष करने का अवसर प्रदान किया। इस जंग ने भारतीयों को सीना चौड़ा करना और उन्हें सिखाया कि वे अपने और दूसरों के लिए लड़ सकते हैं और अपना सब कुछ कुर्बान कर सकते हैं, अपना सब कुछ स्वाह कर सकते हैं, अपना तन मन धन देश की आजादी के लिए न्योछावर कर सकते हैं और अपने अंदरूनी झगड़ों और मतभेदों को भुला सकते हैं यह जंग यह भी सीख देती है कि अपने अंदरूनी झगड़ों को अंदरूनी मतभेदों को भुलाए बिना हम किसी लड़ाई, किसी जंग को नहीं जीत सकते।हमारी आजादी के इस पहले विद्रोह ने हमें सिखाया कि हम अपनी आजादी हासिल करने के लिए अपनी जान तक दे सकते हैं और किसी भी प्रकार की ज्यादती, अत्याचार और जुल्मों सितम का सामना कर सकते हैं और उसका अंत कर सकते हैं। इस क्रांति की लड़ाई ने हमें यह भी सीख दी कि सामाजिक परिवर्तन करने के लिए क्रांतिकारी कार्यक्रम, क्रांतिकारी नेतृत्व, क्रांतिकारी संगठन, क्रांतिकारी अनुशासन और क्रांतिकारी जनता की एकजुटता बेहद जरूरी है, इसके बिना कोई क्रांति सफल नहीं हो सकती।संगीत शिक्षिका नेहा आर्या के निर्देशन में रोशनी,अंजली,तनुजा ,नीलम,लक्षिका ने आजादी के आंदोलन के गीतों के साथ साथ सुभद्रा कुमारी चौहान,जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखे गए गीत पर नाटिका भी प्रस्तुत किए।कार्यक्रम के दौरान 1857 के विद्रोह से संबंधित डाक्यूमेंट्री के साथ साथ भगतसिंह के जीवन पर गौहर रजा निर्देशित फिल्म इंकलाब भी दिखाई गई। बच्चों द्वारा 1857 के शहीदों के चित्र भी बनाए गए।प्रधानाचार्य डा बिशन सिंह मेहता ने वर्तमान दौर में 1857 के विद्रोह के महत्व पर बातचीत रखी।संचालन डा नीलम जोशी ने किया।इस दौरान दीपक कोरंगा,अवंतिका,जगदीश पांडे,दिव्या ढैला मौजूद रहीं।

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